नई दिल्ली: दिल्ली कार ब्लास्ट मामले में जांच का दायरा अब शैक्षणिक संस्थानों तक पहुंच गया है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी के संस्थापक जावेद अहमद सिद्दीकी को गिरफ्तार कर लिया है। यह गिरफ्तारी यूनिवर्सिटी और उससे जुड़े ट्रस्टों में बड़े पैमाने पर वित्तीय धोखाधड़ी और अनियमितताओं के खुलासे के बाद हुई है। मिली जानकारी के अनुसार, ED ने हाल ही में अल-फलाह यूनिवर्सिटी ग्रुप से जुड़े 19 ठिकानों पर व्यापक छापेमारी की थी, जिसमें 48 लाख रुपये नकद बरामद किए गए थे। जांच में यह सनसनीखेज खुलासा हुआ है कि यूनिवर्सिटी ने छात्रों के साथ धोखाधड़ी करने के लिए NAAC की फर्जी मान्यता का इस्तेमाल किया। इसके साथ ही, ट्रस्ट के करोड़ों रुपये की हेराफेरी भी की गई।
रद्द हो चुकी है यूनिवर्सिटी की सदस्यता
जावेद अहमद सिद्दीकी की गिरफ्तारी से कुछ दिन पहले ही, एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटी (AIU) ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी की सदस्यता को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था। AIU ने अपने बयान में कहा था कि पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम और यूनिवर्सिटी का आचरण संघ के मूल्यों से मेल नहीं खाता है। निलंबन के बाद, अल-फलाह यूनिवर्सिटी को अपनी वेबसाइट पर AIU के लोगो का उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है। AIU भारतीय विश्वविद्यालयों का एक महत्वपूर्ण संगठन है और इसकी सदस्यता रद्द होना शैक्षणिक विश्वसनीयता पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।
उमर नबी का कबूलनामा वीडियो और आतंकी मॉड्यूल
हालांकि, इस मामले की जड़ें दिल्ली में हुए कार ब्लास्ट से जुड़ी हुई हैं। ब्लास्ट को अंजाम देने वाले आतंकी उमर नबी का एक कबूलनामा वीडियो भी सामने आया है। इस 1 मिनट 20 सेकंड के वीडियो में उमर खुद को फिदायीन (आत्मघाती हमलावर) बनने की बात कबूल करता दिख रहा है। यह वीडियो दिल्ली धमाके से पहले घर से निकलते समय रिकॉर्ड किया गया था।
जांच एजेंसियों को उमर नबी से जुड़े एक दर्जन से अधिक ऐसे वीडियो मिले हैं। जांच से पता चला है कि इस आतंकी मॉड्यूल के सदस्य आपस में मिलकर अपनी योजनाओं को अंतिम रूप देते थे। उनके संचार का मुख्य माध्यम सिग्नल ऐप पर बनाया गया एक एनक्रिप्टेड चैट ग्रुप था। इस ग्रुप को उमर ने लगभग तीन महीने पहले बनाया था, जिसमें डॉ. मोजम्मिल शकील गनई, डॉ. अदील अहमद राथर, मुफ़स्सर राथर और मौलवी इरफान शामिल थे। ये सभी व्यक्ति मॉड्यूल की कोर टीम माने जा रहे हैं।
ईडी द्वारा यूनिवर्सिटी के संस्थापक की गिरफ्तारी से यह संकेत मिलता है कि जांच एजेंसियां आतंकी गतिविधियों और उससे जुड़े वित्तीय स्रोतों के बीच संभावित लिंक की तलाश कर रही हैं। यह जांच इस बात पर केंद्रित हो सकती है कि क्या धोखाधड़ी से अर्जित किए गए पैसों का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों को फंडिंग करने में किया गया था या नहीं। फिलहाल, ED इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग और धोखाधड़ी के पहलुओं की गहनता से जांच कर रही है, जिससे इस बड़े नेटवर्क के अन्य सदस्यों के भी जल्द ही बेनकाब होने की संभावना है।