यूक्रेन के साथ जारी युद्ध को खत्म करने और सीजफायर पर वार्ता करने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने का फैसला क्यों किया? इस सवाल का जवाब अमेरिकी सीनेट की बजट समिति के अध्यक्ष लिंडसे ग्राहम ने एक बड़े दावे के रूप में दिया है। उन्होंने कहा कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन के अलास्का शिखर सम्मेलन में आने का मुख्य कारण अमेरिका द्वारा भारत पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाने की धमकी थी। इस कदम के पीछे रणनीतिक सोच यह थी कि अगर अमेरिका रूस के ग्राहकों, खासकर भारत, पर सख्ती बरतता है तो रूस की अर्थव्यवस्था डगमगा जाएगी और इससे पुतिन को यूक्रेन युद्ध के मामले में वापस सही दिशा में आने पर मजबूर होना पड़ेगा।
पुतिन-ट्रंप मुलाकात: एक रणनीतिक मोड़
रूस-यूक्रेन युद्ध की कड़ी में रूस के राष्ट्रपति पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच हुई मुलाकात को वैश्विक राजनीति में बहुत महत्व दिया गया। यह मुलाकात अलास्का में हुई, जहाँ दोनों नेताओं ने कई अहम मसलों पर चर्चा की। अमेरिकी सीनेट के वरिष्ठ नेता लिंडसे ग्राहम के अनुसार, इस शिखर सम्मेलन में पुतिन के आने का कारण केवल संवाद की चाह नहीं बल्कि अमेरिका की ओर से जारी दबाव था। खासतौर पर भारत पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क लगाने की धमकी ने रूस की रणनीति को प्रभावित किया।
ग्राहम ने कहा कि रूस की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ समय से कमजोर हो रही है, और उसके मुख्य व्यापारिक साझेदारों में से एक भारत पर यह शुल्क लगने से रूस को भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। इसलिए पुतिन ने इस खतरे को गंभीरता से लेते हुए अमेरिका से बातचीत करने की पहल की। उनका मानना है कि अगर अमेरिका रूस के ग्राहकों पर आर्थिक दबाव बनाए रखता है, तो इससे पुतिन को मजबूरन युद्ध विराम और शांति वार्ता के लिए सकारात्मक कदम उठाने पड़ेंगे।
भारत पर 50% शुल्क लगाने की धमकी का प्रभाव
भारत, रूस का एक महत्वपूर्ण आर्थिक और रणनीतिक साझेदार रहा है। दोनों देशों के बीच कई वर्षों से मजबूत व्यापारिक रिश्ते हैं, खासतौर पर ऊर्जा, रक्षा और कच्चे माल के क्षेत्र में। अमेरिका की ओर से भारत पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाने की धमकी ने इस रिश्ते पर गंभीर असर डाला है। इस धमकी का मकसद भारत को यह संदेश देना था कि अगर वह रूस से व्यापार करना जारी रखेगा, तो उसे आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा।
इस नीति का एक बड़ा मकसद रूस की आर्थिक मजबूती को कमजोर करना था, जिससे पुतिन युद्ध को खत्म करने के लिए वार्ता की मेज पर आएं। लिंडसे ग्राहम का दावा है कि अमेरिका ने इस कदम से रूस को आर्थिक दबाव में लाने की पूरी कोशिश की ताकि यूक्रेन युद्ध का समाधान निकाला जा सके।
अमेरिका की रणनीति और रूस पर असर
अमेरिका की यह रणनीति न केवल रूस पर आर्थिक दबाव बनाने के लिए थी बल्कि इसके पीछे वैश्विक शक्ति संतुलन को लेकर भी गहरी सोच थी। रूस की अर्थव्यवस्था जो पहले ही प्रतिबंधों के चलते कमजोर हो रही है, उस पर और भी ज्यादा आर्थिक झटका देने के लिए यह कदम उठाया गया। भारत जैसे बड़े बाजार को आर्थिक प्रतिबंधों के दायरे में लाने से रूस की विदेशी मुद्रा आय में भारी गिरावट आ सकती है।
इससे पुतिन के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वे युद्ध विराम की दिशा में कदम बढ़ाएं और युद्ध की स्थिति को खत्म करने की पहल करें। इस तरह अमेरिका ने आर्थिक दबाव के जरिए रूस को कूटनीतिक रूप से बातचीत के लिए मजबूर किया है।
भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियां
हालांकि इस पहल के बाद भी युद्ध विराम की राह आसान नहीं है। यूक्रेन युद्ध के जटिल कारण, भू-राजनीतिक हित और क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दे अभी भी पूरी तरह सुलझे नहीं हैं। हालांकि, पुतिन की अमेरिका से बातचीत की इच्छा इस बात का संकेत है कि वह एक स्थायी समाधान की दिशा में सोच रहे हैं।
पर यह भी जरूरी है कि अन्य वैश्विक शक्तियां, खासकर भारत जैसे देशों की भूमिका भी इस मामले में महत्वपूर्ण होगी। भारत की आर्थिक नीतियों और कूटनीतिक संतुलन से रूस की रणनीति पर असर पड़ेगा, जिससे युद्ध की दिशा निर्धारित होगी।
निष्कर्ष
अमेरिकी सीनेट के अध्यक्ष लिंडसे ग्राहम के अनुसार, रूस के राष्ट्रपति पुतिन की अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से मिलने की सबसे बड़ी वजह भारत पर अमेरिका की ओर से 50 प्रतिशत शुल्क लगाने की धमकी थी। यह कदम रूस की आर्थिक स्थिति को कमजोर करने और पुतिन को युद्ध विराम की दिशा में बातचीत के लिए मजबूर करने के लिए उठाया गया था। इस रणनीति ने शांति वार्ता की संभावनाओं को बढ़ावा दिया है, हालांकि युद्ध समाप्ति की राह अभी भी कई चुनौतियों से भरी हुई है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे आने वाले दिनों में इस वार्ता से क्या नतीजे निकलते हैं और वैश्विक राजनीति में किस तरह के बदलाव आते हैं। अमेरिका की यह नीति और भारत की भूमिका भविष्य में रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान में अहम भूमिका