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अमेरिका-चीन तनाव के बीच डिफेंस का बड़ा फैसला, ‘सैन्य टू सैन्य चैनल’ खोलने पर राजी हुए दोनों देशों

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Posted On:Monday, November 3, 2025

वैश्विक महाशक्तियों, अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से जारी भू-राजनीतिक और व्यापारिक तनाव के बीच एक महत्वपूर्ण और रक्षात्मक सहमति बनी है। दोनों देशों ने 'सैन्य-से-सैन्य संचार चैनल' (Military-to-Military Channel) को फिर से स्थापित करने का बड़ा फैसला लिया है। यह कदम ऐसे समय में आया है जब टैरिफ विवाद और क्षेत्रीय वर्चस्व को लेकर दोनों के बीच खुले तौर पर मतभेद गहराए हुए हैं, जिससे कई बार 'युद्ध की आहट' भी महसूस की गई।

तनाव कम करने की दिशा में बड़ा डिफेंस फैसला

अमेरिकी युद्ध सचिव (War Secretary) पीट हेगसेथ ने इस महत्वपूर्ण प्रगति की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि चीन के राष्ट्रीय रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जून के साथ हुई मुलाकात में दोनों पक्षों ने इस चैनल को स्थापित करने पर सहमति जताई। हेगसेथ ने जोर देकर कहा, "हम दोनों ने संचार को मजबूत करने, द्विपक्षीय संबंधों में स्थिरता बनाए रखने और किसी भी उत्पन्न होने वाली समस्याओं को कम करने और तनाव को नियंत्रित करने के लिए सैन्य-से-सैन्य चैनल स्थापित करने पर सहमति दी है।"

विश्लेषकों का मानना है कि इस पहल का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों की सेनाओं के बीच सीधा संवाद स्थापित करना है। माना जा रहा है कि इससे सेनाओं के बीच संबंध बेहतर होंगे और अप्रत्याशित सैन्य टकराव के जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी, जिससे अंततः देश की राजनीति में व्याप्त तनाव भी कम होगा।

क्या है 'सैन्य-से-सैन्य चैनल' का महत्व?

'सैन्य-से-सैन्य चैनल' दो या दो से अधिक देशों की सेनाओं के बीच सीधा और औपचारिक संचार स्थापित करने की प्रक्रिया है। यह किसी भी संकट या गलतफहमी के समय बेहद महत्वपूर्ण साबित होता है।

प्राथमिक उद्देश्य:

सैन्य जोखिमों को कम करना: इस चैनल का प्राथमिक उद्देश्य सैन्य गतिविधियों से जुड़े जोखिमों को कम करना है।

गलतफहमी दूर करना: यह दोनों पक्षों को एक-दूसरे के सैन्य इरादों को स्पष्ट रूप से समझने में मदद करता है।

अप्रत्याशित युद्ध को टालना: सबसे महत्वपूर्ण, यह अनजाने में या गलतफहमी के कारण युद्ध शुरू होने की संभावना को काफी हद तक कम करता है।

सैन्य विशेषज्ञ इसे 'डी-एस्केलेशन' (De-escalation) यानी तनाव कम करने का सबसे प्रभावी उपकरण मानते हैं। जब शीर्ष राजनीतिक स्तर पर मतभेद होते हैं, तब भी सैन्य चैनल खुला रहने से जमीनी स्तर पर किसी भी छोटी घटना को बड़े संघर्ष में बदलने से रोका जा सकता है।

विश्व शांति की ओर एक सधा हुआ कदम

हाल के दिनों में, खासकर दक्षिण चीन सागर और ताइवान जलडमरूमध्य में दोनों देशों की सैन्य गतिविधियों को लेकर चिंताएं बढ़ी थीं। ऐसे में, यह फैसला दिखाता है कि अत्यधिक तनाव के बावजूद, दोनों महाशक्तियां स्थिरता बनाए रखने और पारस्परिक जोखिमों को नियंत्रित करने के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने को तैयार हैं।

इस सहमति को विश्व शांति की दिशा में एक सधा हुआ और आवश्यक कदम माना जा रहा है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि वैश्विक विवादों का समाधान बातचीत और संचार के माध्यम से हो, न कि अनजाने में हुए सैन्य टकराव से।


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