भारत के प्राचीन धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवद् गीता की महिमा अब सीमाओं को पार कर चीन तक पहुँच चुकी है। चीन के प्रख्यात विद्वानों ने गीता के प्रति गहरी श्रद्धा व्यक्त करते हुए इसे ‘ज्ञान का अमृत’ और ‘भारतीय सभ्यता का लघु इतिहास’ बताया है। उनका कहना है कि गीता न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह आध्यात्मिक और भौतिक जीवन के बीच संतुलन का विज्ञान भी है, जो आज की जटिल दुनिया में भी प्रासंगिक बनी हुई है। यह विचार ‘संगमम् – भारतीय दार्शनिक परंपराओं का संगम’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी में सामने आए, जिसका आयोजन चीन में भारतीय दूतावास द्वारा किया गया था। इस सम्मेलन में कई चीनी दार्शनिकों, प्रोफेसरों और शोधकर्ताओं ने भाग लिया और गीता को भारत का ‘दार्शनिक विश्वकोश’ (Philosophical Encyclopedia) बताया।
गीता का चीनी अनुवाद करने वाले प्रो. झांग बाओशेंग बने मुख्य वक्ता
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता 88 वर्षीय प्रोफेसर झांग बाओशेंग थे, जिन्होंने श्रीमद्भगवद् गीता का चीनी भाषा में अनुवाद किया है। उन्होंने कहा कि यह ग्रंथ सिर्फ धर्म की शिक्षा नहीं देता, बल्कि कर्तव्य, कर्म और वैराग्य के माध्यम से जीवन का सार समझाता है।
प्रो. बाओशेंग ने अपने संबोधन में कहा, “गीता का अनुवाद आवश्यक था, क्योंकि यह भारत की आत्मा को प्रकट करती है। यह ग्रंथ सिखाता है कि मनुष्य अपने कर्म से मुक्ति पा सकता है, जब वह फल की इच्छा छोड़ देता है।” उन्होंने 1984-86 के दौरान भारत यात्रा के अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उन्होंने कन्याकुमारी से लेकर गोरखपुर तक हर स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण की उपस्थिति को महसूस किया। उनके अनुसार, गीता का प्रभाव भारतीय समाज के हर पहलू—नैतिकता, मनोविज्ञान और दैनिक जीवन—में गहराई से दिखाई देता है।
गीता को बताया ‘ज्ञान का अमृत’
झेजियांग यूनिवर्सिटी के प्रो. वांग झी-चेंग, जो प्राच्य दर्शन अनुसंधान केंद्र के निदेशक हैं, ने कहा कि गीता 5000 वर्ष पूर्व युद्धभूमि पर अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद पर आधारित है, लेकिन इसकी शिक्षाएं आज भी उतनी ही जीवंत हैं। उन्होंने कहा — “भगवद्गीता के 700 श्लोक सिर्फ प्राचीन दर्शन नहीं हैं, बल्कि वे जीवन की दिशा दिखाने वाली आध्यात्मिक कुंजियां हैं। यह ग्रंथ तब प्रकाश बनकर सामने आता है, जब इंसान भ्रमित और निराश होता है।” प्रो. वांग ने गीता के तीन प्रमुख मार्गों — कर्म योग, सांख्य योग और भक्ति योग — की व्याख्या करते हुए बताया कि यह “तीन ज्ञान” आज की व्यस्त और संघर्षपूर्ण दुनिया में मानसिक शांति और संतुलन का मार्ग दिखाते हैं।
भारतीय संस्कृति को अपनाने की अपील
शेन्ज़ेन यूनिवर्सिटी के प्रो. यू लोंग्यु, जो भारतीय अध्ययन केंद्र के निदेशक हैं, ने कहा कि भारत के पास एक समृद्ध दार्शनिक और सांस्कृतिक विरासत है, जिसका अध्ययन चीन के विद्वानों को और गहराई से करना चाहिए। उन्होंने कहा — “आधुनिक चीन के प्रमुख विद्वानों ने हमेशा ‘त्रिविध शिक्षा’ — चीनी, पश्चिमी और भारतीय — को अपनाया है। मैं सभी चीनी शोधकर्ताओं से आग्रह करता हूँ कि वे भारतीय संस्कृति और दर्शन का अध्ययन करें और भारत-चीन के बीच शांति और समझ को बढ़ावा दें।”
भारतीय राजदूत प्रदीप कुमार रावत ने की सराहना
भारत के राजदूत प्रदीप कुमार रावत ने इस अवसर पर कहा कि यह संगोष्ठी भारत की दार्शनिक परंपराओं को समझने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। उन्होंने कहा कि गीता जैसे ग्रंथ न केवल भारत की आत्मा हैं बल्कि विश्व मानवता के मार्गदर्शक भी हैं। उन्होंने कहा — “हजारों वर्षों से भारतीय दर्शन ने उन मूलभूत प्रश्नों के उत्तर खोजे हैं—सत्य क्या है, जीवन का उद्देश्य क्या है, और मुक्ति कैसे प्राप्त की जा सकती है। चाहे न्याय का तर्क हो, योग का अनुशासन, वेदांत का आत्मनिरीक्षण या बौद्ध धर्म की करुणा—इन सबका लक्ष्य एक ही है, ‘ज्ञान और सद्भाव की खोज।’”
गीता: भारत से विश्व तक का सेतु
इस संगोष्ठी ने यह स्पष्ट किया कि भगवद्गीता अब सिर्फ भारत की धरोहर नहीं, बल्कि एक वैश्विक आध्यात्मिक मार्गदर्शक बन चुकी है। चीनी विद्वानों की बढ़ती रुचि इस बात का प्रमाण है कि विश्व अब भारतीय विचारधारा की गहराई और संतुलन को समझने की दिशा में अग्रसर है। जैसा कि प्रो. बाओशेंग ने कहा — “भगवद्गीता केवल धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि मानवता के लिए शांति, ज्ञान और आत्मबोध का सार्वभौमिक संदेश है।” इस प्रकार, श्रीमद्भगवद्गीता एक बार फिर सिद्ध करती है कि भारत की आध्यात्मिक परंपराएँ सीमाओं से परे जाकर विश्व को एकता और समरसता का संदेश देती हैं।