भारतीय स्टील उद्योग के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ पर, केंद्र सरकार ने घरेलू निर्माताओं को विदेशी 'डंपिंग' से बचाने के लिए एक कड़ा सुरक्षा कवच प्रदान किया है। वित्त मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम अधिसूचना के अनुसार, भारत ने चुनिंदा स्टील उत्पादों पर अगले तीन वर्षों के लिए 12 फीसदी तक की सेफगार्ड ड्यूटी (सुरक्षा शुल्क) लगाने का निर्णय लिया है। यह कदम विशेष रूप से चीन जैसे देशों से आने वाले सस्ते और कम गुणवत्ता वाले माल के बढ़ते प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए उठाया गया है।
सेफगार्ड ड्यूटी: क्या है सरकारी योजना?
सरकार ने घरेलू बाजार की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए इस शुल्क को चरणबद्ध तरीके से लागू करने का फैसला किया है। इसका ढांचा निम्नलिखित है:
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प्रथम वर्ष (2026): आयातित स्टील पर 12% ड्यूटी।
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द्वितीय वर्ष (2027): ड्यूटी घटाकर 11.5% की जाएगी।
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तृतीय वर्ष (2028): अंतिम वर्ष में यह 11% रहेगी।
यह निर्णय मुख्य रूप से चीन, वियतनाम और नेपाल जैसे देशों से आने वाले स्टील को लक्षित करता है। हालांकि, सरकार ने कूटनीतिक और व्यापारिक संतुलन बनाए रखते हुए कुछ विकासशील देशों और 'स्टेनलेस स्टील' (Specialty Steel) जैसी श्रेणियों को इस दायरे से बाहर रखा है।
क्यों आवश्यक था यह सख्त कदम?
भारतीय इस्पात मंत्रालय और 'डायरेक्टरेट जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज' (DGTR) की जांच में पाया गया कि विदेशी कंपनियां भारतीय बाजार में लागत से भी कम कीमत पर स्टील की 'डंपिंग' कर रही थीं।
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अचानक और तीव्र वृद्धि: हाल के महीनों में स्टील आयात में अप्रत्याशित उछाल देखा गया, जिससे टाटा स्टील, JSW स्टील और सेल (SAIL) जैसी घरेलू कंपनियों के मुनाफे और अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा था।
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आत्मनिर्भर भारत को खतरा: सस्ते और घटिया स्टील की उपलब्धता भारत के स्वयं को स्टील हब बनाने के सपने में बाधा बन रही थी।
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अस्थायी से स्थायी समाधान: सरकार ने पहले अप्रैल में 200 दिनों के लिए अस्थायी शुल्क लगाया था, लेकिन स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अब इसे तीन साल के लिए पक्का कर दिया गया है।
वैश्विक ट्रेड वॉर और चीन की दोहरी चाल
वर्तमान में पूरी दुनिया में 'स्टील डिप्लोमेसी' तनावपूर्ण दौर से गुजर रही है। जहां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ के जरिए व्यापारिक घेराबंदी की है, वहीं दक्षिण कोरिया और वियतनाम भी एंटी-डंपिंग उपायों का सहारा ले रहे हैं।
दूसरी ओर, चीन एक विरोधाभासी रणनीति अपना रहा है। एक तरफ वह वैश्विक स्तर पर निर्यात बढ़ा रहा है, तो दूसरी तरफ उसने घोषणा की है कि 1 जनवरी 2026 से वह 935 वस्तुओं पर आयात शुल्क घटाएगा। चीन की यह कोशिश अपनी घरेलू मांग को प्रोत्साहित करने और 'मोस्ट-फेवर्ड-नेशन' (MFN) स्तरों से कम टैरिफ रखकर वैश्विक छवि सुधारने की हो सकती है।
घरेलू अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
भारत के इस फैसले से स्टील सेक्टर के निवेशकों में भारी उत्साह है। आयात शुल्क लगने से घरेलू कंपनियों के मार्जिन में सुधार होगा और उनकी प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति बढ़ेगी। यह न केवल औद्योगिक उत्पादन को गति देगा, बल्कि बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में स्वदेशी स्टील के उपयोग को भी बढ़ावा देगा।