बांग्लादेश की अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को 'जुलाई विद्रोह' के दौरान मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों समेत पाँच गंभीर आरोपों में दोषी मानते हुए मौत की सज़ा सुनाई है। यह फैसला बांग्लादेश की राजनीति और कानूनी इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना है।
सह-दोषियों को सज़ा
इस फैसले में हसीना के दो शीर्ष सहयोगियों को भी सज़ा मिली है:
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पूर्व गृह मंत्री असदुज्जामान खान कमाल: इन्हें भी सज़ा-ए-मौत दी गई है।
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पूर्व पुलिस महानिरीक्षक (IGP) चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून: इन्हें सरकारी गवाह बनने के कारण 5 साल जेल की सज़ा सुनाई गई है। वह फिलहाल हिरासत में हैं।
बांग्लादेश में मौत की सज़ा कैसे दी जाती है
बांग्लादेश के क्रिमिनल प्रोसीजर कोड 1898 के अनुसार, मौत की सज़ा पाए व्यक्ति को केवल फाँसी (Hanging) देकर ही निष्पादित किया जाता है।
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दोषी को गर्दन के सहारे तब तक लटकाया जाता है, जब तक उसकी मृत्यु सुनिश्चित न हो जाए।
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बांग्लादेशी कानून में गोली मारकर, बिजली के झटके या लेथल इंजेक्शन से मौत की सज़ा देने का प्रावधान नहीं है।
किन अपराधों में मौत की सज़ा?
बांग्लादेश के दंड कानूनों में लगभग 33 अपराधों के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान है। प्रमुख अपराधों में शामिल हैं:
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हत्या
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राज्य के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ना
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विद्रोह में सहायता करना
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आतंकवाद संबंधी अपराध
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अपहरण
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बलात्कार (2020 में जोड़ा गया)
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एसिड हमले से होने वाली मौत
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नशीली दवाओं से संबंधित गंभीर अपराध
फाँसियों का रिकॉर्ड
एक रिपोर्ट के अनुसार, 1991 से अब तक बांग्लादेश में कम से कम 101 लोगों को फाँसी दी गई है। 2013 से 2023 के बीच, 30 फाँसियाँ दी गईं, जिनमें से अधिकतर मामले हत्या, आतंकवाद और 1971 के मुक्ति युद्ध से जुड़े युद्ध अपराधों के थे।
ICT और इसकी स्थापना
यह विडंबना है कि जिस ट्रिब्यूनल ने शेख हसीना को सज़ा सुनाई, उसकी नींव उन्होंने खुद रखी थी:
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स्थापना: इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT) की स्थापना 25 मार्च 2010 को शेख हसीना ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान हुए युद्ध अपराधों की जाँच और सुनवाई के लिए की थी।
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प्रमुख फैसले: लगभग 15 साल में ICT ने 57 फैसले सुनाए हैं। इसने जमात-ए-इस्लामी और बीएनपी (BNP) के कई वरिष्ठ नेताओं को भी मौत की सज़ा सुनाई है, जिनमें से 6 को सभी कानूनी प्रक्रियाओं के बाद फाँसी दी जा चुकी है।
फैसले के ख़िलाफ़ अपील की प्रक्रिया
बांग्लादेश की कानूनी प्रणाली में मौत की सज़ा के ख़िलाफ़ विस्तृत अपील प्रक्रिया है:
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हाई कोर्ट में अपील: मौत की सज़ा पाए व्यक्ति को सबसे पहले हाई कोर्ट में अपील करने का अधिकार है।
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सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू: हाई कोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू अपील दायर की जा सकती है।
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राष्ट्रपति से माफ़ी: यदि रिव्यू अपील भी खारिज हो जाती है, तो दोषी बांग्लादेश के राष्ट्रपति से माफ़ी की गुहार लगा सकता है (संविधान के तहत)।
अगर राष्ट्रपति भी माफ़ी की अर्जी खारिज कर देते हैं, तभी फाँसी का आदेश अंतिम रूप से पूरा किया जाता है। शेख हसीना भी ICT के इस फैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर सकती हैं।
हसीना का बयान
अदालत के फैसले के बाद शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग ने उनका बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने सज़ा को "पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक रूप से प्रेरित" बताया। उन्होंने कहा कि ये फैसले एक ऐसी ट्रिब्यूनल ने सुनाए हैं जिसे "एक गैर-निर्वाचित और बिना जनमत सरकार ने संचालित किया है," जिसका उद्देश्य उन्हें हटाना और अवामी लीग को एक राजनीतिक शक्ति के रूप में ख़त्म करना है।