बांग्लादेश की राजनीति में एक नाटकीय मोड़ आया है, जहाँ अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने देश की अपदस्थ पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को फाँसी की सज़ा सुनाई है। यह फैसला जुलाई 2024 के छात्र-नेतृत्व वाले विद्रोह के दौरान मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों से जुड़ा है, जिसे दबाने के लिए की गई कार्रवाई में अनुमानित 1400 लोगों की मौत हो गई थी। इस ऐतिहासिक और विवादास्पद फैसले ने पूरे देश में राजनीतिक अनिश्चितता और तनाव को बढ़ा दिया है।
फाँसी की सज़ा का आधार
ICT ने हसीना को मुख्य रूप से तीन गंभीर आरोपों के लिए दोषी ठहराया है:
ट्रिब्यूनल ने अपने विस्तृत 453-पृष्ठ के फैसले में कहा कि स्पष्ट प्रमाण हैं कि हसीना ने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ हेलीकॉप्टरों, ड्रोन और घातक हथियारों के उपयोग को सीधे तौर पर अधिकृत किया था। यह फैसला बांग्लादेश के इतिहास में पहली बार है जब किसी पूर्व प्रधानमंत्री को ICT द्वारा फाँसी की सज़ा दी गई है।
गद्दारी करने वाले दो करीबी
शेख हसीना को सज़ा तक पहुँचाने में उनके ही दो पूर्व सहयोगियों की गवाही और कार्रवाई निर्णायक साबित हुई:
1. वकार उज़ ज़मान (Waqar Uz Zaman) - वर्तमान सेना प्रमुख
वकार उज़ ज़मान, जिन्हें जून 2024 में सेना प्रमुख नियुक्त किया गया था, पर हसीना के ख़िलाफ़ 'गद्दारी' का आरोप है। पूर्व गृह मंत्री के बयानों और परिस्थितियों के अनुसार:
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वकार पर अमेरिका से सांठगांठ करने और जानबूझकर विद्रोहियों को नियंत्रित न करने का आरोप है।
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जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई, तभी उन्होंने हसीना को सूचित किया।
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माना जाता है कि वकार के कहने पर ही हसीना ने इस्तीफा दिया, इस आश्वासन पर कि वह शांति बहाल होने पर वापस आ सकती हैं। हालाँकि, उनके जाते ही वकार ने अंतरिम सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी।
2. अल मामून (Chowdhury Abdullah Al-Mamun) - पूर्व पुलिस महानिरीक्षक
मामले में अल मामून की भूमिका सरकारी गवाह (State Witness) बनने की रही।
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जुलाई विद्रोह के आरोपों में हसीना के साथ उनका नाम भी था।
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ट्रायल के दौरान, उन्होंने अभियोजन पक्ष के लिए सरकारी गवाह बनना स्वीकार किया।
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मामून ने कोर्ट के सामने उच्च स्तरीय गवाही दी, जिसमें ऐसी बातों का खुलासा हुआ जो सिर्फ़ उच्च अधिकारियों के बीच चर्चा में थीं।
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उनकी गवाही के तुरंत बाद, एक ऑडियो वायरल हुआ जिसमें कथित तौर पर शेख हसीना पुलिस प्रमुख से विद्रोहियों पर गोली चलाने के लिए कह रही थीं।
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सरकारी गवाह बनने के कारण, मामून को फाँसी की सज़ा से बख्श दिया गया और उन्हें पाँच साल जेल की सज़ा सुनाई गई, जबकि वह पहले से ही 17 महीने जेल में बिता चुके हैं।
शेख हसीना का आगे क्या?
सज़ा सुनाए जाने के समय शेख हसीना भारत में निर्वासित जीवन जी रही हैं।
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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार अब इंटरपोल के माध्यम से उनका वारंट जारी करवाएगी और उसे भारत सरकार को सौंपेगी।
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उनका प्रत्यर्पण (extradition) भारत के फैसले पर निर्भर करेगा।
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फाँसी की सज़ा के बावजूद, हसीना के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का विकल्प है, बशर्ते वह सज़ा सुनाए जाने के 30 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करें या गिरफ़्तार की जाएँ।
राजनैतिक भविष्य: बांग्लादेश में 6 महीने के भीतर आम चुनाव होने हैं। मुख्य विपक्षी दल बीएनपी (BNP) ने हसीना के मामले में नरमी बरतने और सत्ता में आने पर उनके कुछ मुकदमों को वापस लेने की बात कही है, हालाँकि किन मुकदमों को वापस लिया जाएगा, यह स्पष्ट नहीं है। हसीना ने खुद इस फैसले को 'पक्षपातपूर्ण और राजनीति से प्रेरित' बताते हुए खारिज कर दिया है।
यह फैसला बांग्लादेश की राजनीति को एक निर्णायक मोड़ पर ले आया है, जहाँ राजनीतिक प्रतिशोध और न्याय के बीच की रेखा बेहद पतली हो गई है।