वन्यजीव प्रेमियों और गुजरात के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण है। दशकों के लंबे इंतजार के बाद, गुजरात ने एक बार फिर भारत के 'बाघ मानचित्र' पर अपनी जगह बना ली है। 33 साल के लंबे अंतराल के बाद, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने आधिकारिक तौर पर गुजरात को उन राज्यों की सूची में फिर से शामिल कर लिया है जहाँ बाघों का वास है।
गुजरात: शेरों के बाद अब बाघों का भी बसेरा
गुजरात के उप मुख्यमंत्री हर्ष सांघवी ने 26 दिसंबर 2025 को इस सुखद समाचार की पुष्टि की। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर गर्व के साथ साझा किया कि गुजरात अब भारत का एकमात्र ऐसा राज्य बन गया है, जो शेर (Asiatic Lions), तेंदुए (Leopards) और बाघ (Tigers) तीनों का प्राकृतिक घर है। यह उपलब्धि न केवल राज्य के वन विभाग की मेहनत को दर्शाती है, बल्कि भारत के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी एक बड़ा संकेत है।
33 साल का लंबा संघर्ष: 1992 से 2025 तक
गुजरात में बाघों का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन 80 के दशक के अंत तक उनकी संख्या नगण्य हो गई थी:
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अंतिम गणना: 1989 में आखिरी बार बाघों के पगमार्क (पदचिह्न) मिले थे।
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दर्जा खोना: पर्याप्त साक्ष्य न मिलने के कारण 1992 में गुजरात को राष्ट्रीय बाघ जनगणना की सूची से बाहर कर दिया गया था।
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2019 की त्रासदी: साल 2019 में महिसागर जिले में एक बाघ देखा गया था, जिसने एक उम्मीद जगाई थी। लेकिन दुर्भाग्य से, वह बाघ केवल 15 दिनों के भीतर मृत पाया गया, जिससे राज्य का 'टाइगर स्टेट' बनने का सपना फिर टूट गया।
रतनमहल अभयारण्य: जहाँ लौटा 'जंगल का राजा'
NTCA की पुष्टि के अनुसार, यह नया बाघ दाहोद जिले के रतनमहल वन्यजीव अभयारण्य में देखा गया है। वन विभाग द्वारा लगाए गए ट्रैप कैमरों ने बाघ की गतिविधियों को रिकॉर्ड किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बाघ पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश या राजस्थान के गलियारों से भटक कर यहाँ आया है और अब उसने रतनमहल को अपना स्थायी बसेरा बना लिया है।
बाघ की निरंतर मौजूदगी और पर्याप्त सबूतों के आधार पर ही NTCA ने वर्ष 2026 की आगामी राष्ट्रीय बाघ गणना के लिए गुजरात को आधिकारिक तौर पर 'बाघ उपस्थिति वाले राज्य' के रूप में शामिल किया है।
पर्यावरण और पर्यटन के लिए नई उम्मीदें
गुजरात में बाघों की वापसी के दूरगामी परिणाम होंगे:
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पारिस्थितिकी संतुलन: बाघ खाद्य श्रृंखला में शीर्ष पर होते हैं। उनकी वापसी से रतनमहल और आसपास के जंगलों के स्वास्थ्य में सुधार होगा।
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पर्यटन को बढ़ावा: अब तक लोग गुजरात केवल 'एशियाई शेरों' को देखने आते थे। अब बाघों की मौजूदगी से दाहोद और रतनमहल क्षेत्र में इको-टूरिज्म को बड़ा बढ़ावा मिलेगा।
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सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम: राज्य सरकार ने अब बाघों की सुरक्षा के लिए 'स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स' और बेहतर निगरानी तंत्र की योजना बनाना शुरू कर दिया है ताकि 2019 जैसी घटना दोबारा न हो।
निष्कर्ष
33 साल बाद मिला यह दर्जा गुजरात की जैव-विविधता के संरक्षण की दिशा में एक बहुत बड़ी जीत है। हर्ष सांघवी के शब्दों में, "यह हर गुजराती के लिए गर्व की बात है।" अब गुजरात न केवल 'गिर के शेरों' के लिए जाना जाएगा, बल्कि रतनमहल के बाघों की दहाड़ भी इसकी पहचान बनेगी।